Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -06-Sep-2022 - निरोगी काया

पहला सुख निरोगी काया,
दुखी न कर तू अपना ही साया।
धन माया के चक्कर में तुम,
जो जाते हो यहां झूम झूम। 
रिश्ते सब हो जाते बेगाने,
बन जाते कई हैं अफसाने।
भूल जाते तन का आराम,
करते रहते धन के लिए काम।
धन के लिए मेहनत करता,
तन के लिए उदासीनता धरता।
उल्टा सीधा खा खाकर रोज,
मस्तिष्क को न पाता खोज।
रोग जब तन को लग जाता,
काया के सुख की याद दिलाता।
पीड़ा काया की सही नहीं जाती,
रोगमाया अपनी बाहें है फैलाती।
कह गए सारे संत, बाबा, फकीर,
झोली भर लो रंगों से ले अबीर।
अपनी काया का कारज करना पड़ता,
रोग लगा तो खुद को भरना पड़ता।
बुलावा जब आएगा ऊपर वाले का,
चाबी न बना पाएगा उस ताले का।
जब तक तुम जिंदा हो प्यारे,
काया को निरोगी रखो सारे।
सुख इससे बढ़कर न कहीं मिलेगा,
कंचन सी काया का फूल खिलेगा।।


#दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)

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7 Comments

बहुत बहुत बहुत उम्दा और संदेह देती हुई कविता लाजवाब

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Abhinav ji

07-Sep-2022 07:40 AM

Nice

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Pratikhya Priyadarshini

06-Sep-2022 09:38 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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